2019 की राजनीति के महारथी
राजेश कुंदरा
नई दिल्ली, (ख.सं.)। दिल्ली के राम लीला मैदान पर अबकी बार फिर मोदी सरकार के नारे के साथ मिशन 2019 का शंखनाद हुआ है। भारतीय जनता पार्टी के दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन में देश भर से आये कार्यकर्ताओं में जोश दिखाई पड़ा। प्रधानमंत्री मोदी मंच से उतरकर कार्यकर्ताओं के बीच पहुंचे। इस बार सबसे कठिन चुनाव उत्तर प्रदेश का है। भाजपा ने जेपी नड्डा को मुख्य चुनाव प्रभारी तैनात किया है। संघ के सवर्ण आरक्षण जैसा नया मुद्दा भी मिल गया है जिसका विपक्षी दल भी विरोध नहीं कर पा रहे हैं। भाजपा अध्यक्ष अमितशाह ने कार्यकर्ताओं में जोश भरा और कहा कि विपक्षी दलों के गहके गठबंधनों से डरने की कोई जरूरत नहीं है। अमित शाह ने यूपी में सपा और बसपा के बीच गठबंधन की खबरों के परिपेक्ष्य में ही कहा कि पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में पिछली बार से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करेगी। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि वे यह याद रखें कि हम अजेय योद्धा मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने जा रहे है। शाह ने 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना पानीपत के तीसरे युद्ध से की और कहा कि देश में 130 वर्षों का ऐसा कालखंड भी आया जब शिवजी और अन्य सेनानियों के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई शुरू हुई थी। एक तरफ भाजपा जहां अपने महारथियों में जोश भर रही है तो विपक्षी दल के नेता भी पुख्ता तैयारी करने लगे हैं।
कांग्रेस ने कभी दिल्ली में सभी सांसद अपने पक्ष में जुटाये थे। अब उसके पास वहां एक भी सांसद नहीं है।
इसलिए दिल्ली में अजय माकन ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ा तो पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को फिर से दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौपी गयी है। अभी कुछ दिन पहले ही शीला दीक्षित ने आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ने की बात कही थी। उन्होंने उस समय इस बात को अपनी व्यक्तिगत राय बताया था लेकिन अब लगता है कि यही पार्टी की रणनीति है। इसीतरह उत्तर प्रदेश में कांग्रेस गठबंधन का विवाद नहीं खड़ा करना चाहती लेकिन भाजपा का सशक्त मुकाबला वह करेगी। प्रियंका वाड्रा करना चाहती लेकिन भाजपा का सशक्त मुकाबला वह करेगी। प्रियंका वाड्रा को लाने की बात एक बार फिर से चल पड़ी हैअब की बार रायबरेली से प्रियंका वाड्रा को चुनाव लड़ाने की चर्चा चल रही है क्योंकि यहां से संसदीय प्रतिनिधित्व करने वाली श्रीमती सोनिया गांधी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। प्रियंका वाड्रा के रायबरेली से चुनाव लड़ने का असर सिर्फ एक ही सीट पर नहीं पड़ेगा बल्कि कई और सीटें भी प्रभावित होंगी। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का अकेले चुनाव लड़ना भी एक खास रणनीति के तहत है। इसीलिए अखिलेश यादव ने कहाकि सपा और बसपा के साथ आने से भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस भी भयभीत है। वह कहते हैं कि हम गठबंधन के जरिये लोकसभा चुनाव में जीत का परचम फहराएंगे। अब सोचने की बात है कि सरकार बनाने के लिए 273 सांसदों की जरूरत होगी और सपा-बसपा मिलकर चाहे जितनी ताकत आजमानें लेकिन 73 सांसद भी नहीं जुटा पाएंगे। इसका मतलब है कि रणनीति कुछ और हैबसपा प्रमुख सुश्री मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़कर ज्यादा से ज्यादा सांसद जुटाएंगे लेकिन केन्द्र में सरकार बनाने की संभावनाएं अन्य दलों के साथ आने पर ही बन सकती हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव और पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने इस तरह का ही फार्मूला बनाया था। इस फार्मूले में बाधा सिर्फ एक है और वह है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कोई विकल्प विपक्ष के पास नहीं है। प्रधान मंत्री तो बनने को कई नेता तैयार बैठे हैं लेकिन मोदी के विकल्प वे दूर-दूर तक नजर नहीं आते । इसलिए 2019 का चुनावी महाभारत निश्चित रूप से काफी दिलचस्प होने वाला है।
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