परिंदे भी देते हैं तिरंगी छटा....
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बांसवाड़ा(ख. स.)/ देश के 69वें गणतंत्र दिवस के भव्य आयोजन के लिए हर कोई आतुर है। शीत ऋतु में वागड़ अंचल के प्रवास पर आए परिंदें भी मानों इस दिवस का स्वागत करते प्रतीत हो रहे हैं। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर एक ऐसा ही नज़ारा कूपड़ा तालाब पर दिखाई दिया जहां पर सुर्खाब, चकवा-चकवी या चक्रवाक और अंग्रेजी में रडी शलडक नाम से पहचान बनाने वाला सुनहरे रंग का प्रवासी पक्षी तिरंगी छटा दिखाते हुए उड़ान भरता दिखाई दिया। 
यह पक्षी तिब्बत और मंगोलिया से यहां आता है। इन दिनों जिले के विभिन्न जलाशयों में यह पाया जाता है। यह पक्षी हंस कुल का, मझोले कद का प्राणी है, जो प्रति वर्ष जाड़ों के प्रारंभ में हमारे देश में उत्तरी प्रदेशों से आकर जाड़ा समाप्त होते होते फिर उसी ओर लौट जाता है। इसका रंग गाढ़ा नारंगी या हलका कत्थई होता है, लेकिन इसकी गरदन ओर सिर बदामी होता है। गरदन के चारों ओर एक काला कंठा रहता हैं, लेकिन मादा इस कंठे से रहित होती है। डैने और पर के कुछ पंख काले और सफेद रहते हैं और डैने का चित्ता हरा होता है। सुर्खाब जोड़े में रहते हैं, लेकिन कभी कभी सैकड़ों का झुंड बना लेते हैं। इनका मुख्य भोजन घास-पात, सेवर तथा अन्न के दाने आदि हैं, लेकिन छोटी छोटी मछलियाँ और घोंघे, कटुए आदि भी ये खा लेते हैं। ‘सुर्खाब के पर’ एक प्रसिद्ध मुहावरा है इससे साबित होता है कि इसके सुनहरे रंगों के होने के कारण इसके परों का अत्यधिक महत्त्व होता है
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