क्या है नारी सशक्तिकरण चुनौतियाँ और सम्भावनाएँ :नरगिस नक़वी
हम पुरुष सशक्तिकरण की बजाए केवल महिलाओं के सशक्तिकरण के बारे में ही क्यों बात करते हैं? महिलाओं को क्यों सशक्तिकरण की आवश्यकता है और पुरुषों की क्यों नहीं है? दुनिया की कुल आबादी का लगभग 50% महिलाएं हैं फिर भी समाज के इस बड़े हिस्से को सशक्तिकरण की आवश्यकता क्यों है? महिलाएं अल्पसंख्यक भी नहीं है कि उन्हें किसी प्रकार की विशेष सहायता की आवश्यकता हो। तथ्यों के आधार पर कहा जाए तो यह एक सिद्ध तर्क है कि महिलाएं पुरुषों से हर कार्य में बेहतर है। तो यहाँ सवाल यह उठता है कि हम 'महिला सशक्तिकरण' विषय पर चर्चा क्यों कर रहे हैं?
सशक्तिकरण की आवश्यकता सदियों से महिलाओं का पुरुषों द्वारा किए गए शोषण और भेदभाव से मुक्ति दिलाने के लिए हुई; महिलाओं की आवाज़ को हर तरीके से दबाया जाता है। महिलाएं विभिन्न प्रकार की हिंसा और दुनिया भर में पुरुषों द्वारा किए जा रहे भेदभावपूर्ण व्यवहारों का लक्ष्य हैं। भारत भी अछूता नहीं है।
भारत एक जटिल देश है। यहाँ सदियों से विभिन्न प्रकार की रीति-रिवाजों, परंपराओं और प्रथाओं का विकास हुआ है। ये रीति-रिवाज और परंपराएं, कुछ अच्छी और कुछ बुरी, हमारे समाज की सामूहिक चेतना का एक हिस्सा बन गई हैं। हम महिलाओं को देवी मान उनकी पूजा करते हैं; हम अपनी मां, बेटियों, बहनों, पत्नियों और अन्य महिला रिश्तेदारों या दोस्तों को भी बहुत महत्व देते हैं लेकिन साथ ही भारतीय अपने घरों के अंदर और अपने घरों के बाहर महिलाओं से किए बुरे व्यवहार के लिए भी प्रसिद्ध हैं।
हर धर्म हमें महिलाओं के सम्मान और शिष्टता के साथ व्यवहार करना सिखाता है। आज के आधुनिक में समाज की सोच इतनी विकसित हो गई है कि महिलाओं के खिलाफ शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की कुरीतियाँ और प्रथाएँ आदर्श बन गई हैं। जैसे सतीप्रथा, दहेज प्रथा, परदा प्रथा, भ्रूण हत्या, पत्नी को जलाना, यौन हिंसा, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और अन्य विभिन्न प्रकार के भेदभावपूर्ण व्यवहार; ऐसे सभी कार्यों में शारीरिक और मानसिक तत्व शामिल होते हैं।
महिलाओं के खिलाफ अपराध या अत्याचार अभी भी बढ़ रहे हैं। इनसे निपटने के लिए समाज में पुरानी सोच वाले लोगों के मन को सामाजिक योजनाओं और संवेदीकरण कार्यक्रमों के माध्यम से बदलना होगा।
इसलिए महिला सशक्तिकरण की सोच न केवल महिलाओं की ताकत और कौशल को उनके दुखदायी स्थिति से ऊपर उठाने पर केंद्रित करती है बल्कि साथ ही यह पुरुषों को महिलाओं के संबंध में शिक्षित करने और महिलाओं के प्रति बराबरी के साथ सम्मान और कर्तव्य की भावना पैदा करने की आवश्यकता पर जोर देती है।
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