क्या महागठबंधन तय करेगा देश की दिशा?
नई दिल्ली (ख. स.) देश में जैसे-जैसे केन्द्र के चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं वैसे-वैसे राजनीतिक दलों की रणनीति हर प्रदेश में तेजी से बदल रही है। छोटी पार्टियों और क्षेत्रीय दलों के एक मंच पर आने से मोदी व भाजपा में बेचैनी साफ देखी जा सकती है। जब से यूपी में बसपा और सपा के बीच गठबंधन हुआ है, तब से भाजपा नेताओं में काफी उथल-पुथल मची हुई है। इस गठबंधन में कांग्रेस भले ही साथ न आई हो लेकिन इससे उसके नेताओं के दिल में उदासी के बजाय खुशी ही अभी जो भी गठबंधन सामने आ रहे हैं उन सबका सामूहिक ध्येय एक ही है- किसी भी हाल में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को सत्ता से महरूम करें। इधर मोदी और शाह ने भी ठान लिया है कि जो दल उसके लिए हार का सबब बनने वाले हैं, उनके नेताओं को सरकारी मशीनरी के सहारे ठिकाने लगाया जाएउत्तर प्रदेश में अवैध खनन मामले में 5 जनवरी को सीबीआई के जो छापें पड़वाए गए, वे भी इसी का एक हिस्सा फरार दिए जा रहे हैं।
काबिलेगौर हो कि सन 2012 से 2017 के बीच अखिलेश उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे और 2012 से 2013 तक खनन विभाग उन्हीं के पास था लेकिन जब मोदी ने सीबीआई का सहारा लेकर अखिलेश को डराने का काम किया तो अखिलेश ने साफ कह दियाकि हम डरने वाले नहीं हैं। प्रधानमंत्री के पास अगर सीबीआई है तो हमारे पास जनता है। देखा जाए तो छापों की आंच ने सपा के युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश का मनोबल तोड़ने की बजाय बढ़ाया ही है। खास बात यह है कि जब से पीएम मोदी ने ऐसी हरकत की है तब से सपा और बसपा की गांठें गहरी होने लगीं हैं। अखिलेश पर सीबीआई दबाव की केन्द्र सरकार की नीति को देखते हुए साफ हो गया था कि देश के इस सबसे बड़े सूबे में 2019 का लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी साथ मिलकर ही लड़ेंगी, मोदी के लिए सिरदर्द... उनके साथ खड़े रहने का भरोसा दिलाया बल्कि पार्टी ने लिखित बयान भी जारी किया। इस बयान में बाकायदा ये लिखा किजैसे ही यह बात सामने आई कि सपा और बसपा के नेताओं की मुलाकात हुई है, भाजपा सरकार ने पुराने खनन केस में छापेमारी शुरू करवा दी है। यह राजनैतिक षडयंत्रा है। भाजपा, बसपा के खिलाफ भी पहले यह हथकंडा अपना चुकी है।चुनाव से ठीक पहले छोटे दलों के नेताओं को डराने की भाजपा की यह रणनीति सहयोगी साबित होगी या हानिकारक, यह तो अभी वक्त के गर्भ में है लेकिन इस तरह की हरकतों से यह तो साबित हो ही गया है कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह इन दलों की एकजुटता से डर तो गए हैं। इसमें भी कोई दो राय नहीं हैं कि ये छोटे दल अबकि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के लिए देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर साबित होंगे
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