आनंदपुर साहिब/दिल्ली (ख.स.)। आनंदपुर साहिब की स्थापना 1665 में गुरु तेग बहादुर जी (नौवें सिख गुरु) द्वारा की गई थी। उन्होंने इस स्थान को मकराना के राजा भिम चंद से खरीदा था। इसका नाम "आनंदपुर" (आनंद का शहर) गुरु तेग बहादुर जी की पत्नी माता गुजरी जी के सम्मान में रखा गया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1687 में यहाँ खालसा पंथ की स्थापना की। 1699 में बैसाखी के दिन, उन्होंने पंज प्यारों (पांच प्रिय) को अमृत छकाकर खालसा बनाया, जो सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण क्षण है। आनंदपुर साहिब सिखों के लिए एक केंद्रीय स्थान रहा है, जहाँ कई ऐतिहासिक घटनाएँ घटीं, जैसे मुगलों और पहाड़ी राजाओं के साथ युद्ध। यहाँ गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों को आत्मरक्षा और धर्म की रक्षा के लिए सशस्त्र प्रशिक्षण दिया।

आनंदपुर साहिब की स्थापना 1665 में गुरु तेग बहादुर जी (नौवें सिख गुरु) द्वारा की गई थी। उन्होंने इस स्थान को मकराना के राजा भिम चंद से खरीदा था। इसका नाम "आनंदपुर" (आनंद का शहर) गुरु तेग बहादुर जी की पत्नी माता गुजरी जी के सम्मान में रखा गया।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1687 में यहाँ खालसा पंथ की स्थापना की। 1699 में बैसाखी के दिन, उन्होंने पंज प्यारों (पांच प्रिय) को अमृत छकाकर खालसा बनाया, जो सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण क्षण है।
सिख इतिहास में आनंदपुर साहिब सिखों के लिए एक केंद्रीय स्थान रहा है, जहाँ कई ऐतिहासिक घटनाएँ घटीं, जैसे मुगलों और पहाड़ी राजाओं के साथ युद्ध। यहाँ गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों को आत्मरक्षा और धर्म की रक्षा के लिए सशस्त्र प्रशिक्षण दिया।
आनंदपुर साहिब पंजाब के रूपनगर जिले में, सतलुज नदी के किनारे, शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में स्थित है। यह चंडीगढ़ से लगभग 85 किलोमीटर और अमृतसर से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर है।
प्राकृतिक सौंदर्य: शिवालिक पहाड़ियों और सतलुज नदी के कारण यह क्षेत्र प्राकृतिक रूप से सुंदर और शांत है।
आनंदपुर साहिब में कई महत्वपूर्ण गुरुद्वारे हैं, जो सिख धर्म के इतिहास और संस्कृति को दर्शाते हैं।
यह आनंदपुर साहिब का सबसे महत्वपूर्ण गुरुद्वारा है और सिख धर्म के पांच तख्तों में से एक है। यहीं पर 1699 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। गुरुद्वारे में ऐतिहासिक हथियार, जैसे गुरु गोबिंद सिंह जी की तलवार,खांडा, और अन्य शस्त्र प्रदर्शित हैं,बैसाखी के दौरान यहाँ लाखों श्रद्धालु आते हैं।
होला मोहल्ला एक सिख त्योहार है, जो होली के अगले दिन मनाया जाता है। इसे गुरु गोबिंद सिंह जी ने शुरू किया था।
यह सिखों का सैन्य प्रशिक्षण और युद्ध कौशल प्रदर्शन का अवसर होता है। इसमें नकली युद्ध (गतका), घुड़सवारी, और शस्त्र प्रदर्शन शामिल हैं।होला मोहल्ला के दौरान आनंदपुर साहिब में लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। यह सिख संस्कृति और वीरता का प्रतीक है।
आनंदपुर साहिब में कई किले हैं,जो गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा बनवाए गए थे। ये किले उनकी रणनीतिक और सैन्य कुशलता को दर्शाते हैं। प्रमुख किले हैं।
आनंदपुर साहिब केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि सिख इतिहास, संस्कृति, और वीरता का जीवंत प्रतीक है। यहाँ की शांति, आध्यात्मिकता, और ऐतिहासिक महत्व हर किसी को आकर्षित करते हैं। यदि आप आनंदपुर साहिब की यात्रा करने की योजना बना रहे हैं, तो बैसाखी या होला मोहल्ला का समय सबसे उपयुक्त है, जब यहाँ का उत्सवी माहौल देखने लायक होता है।
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