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सरकार, सेना को तकनीकी रूप से उन्नत युद्ध के लिए तैयार बल में परिवर्तित कर रही है: रक्षामंत्री

 नई दिल्ली (ख.स.)। तमिलनाडु के वेलिंगटन में डिफेंस सर्विसेस स्टॉफ कॉलेज (डीएसएससी) के 80वें स्टाफ कोर्स के दीक्षांत समारोह के दौरान भारत और मित्र देशों के सशस्त्र बल अधिकारियों को संबोधित करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा,“सशस्त्र बलों को संयुक्त रूप से काम करना चाहिए और आज के लगातार विकसित हो रहे बहु-क्षेत्रीय वातावरण में भविष्य के लिए तैयार रहना चाहिए, जहां साइबर, अंतरिक्ष और सूचना युद्ध आदि पारंपरिक अभियानों की तरह ही शक्तिशाली हैं।”

मजबूती से टिका हुआ है ।

रक्षा मंत्री ने आत्मनिर्भरता के माध्यम से सशस्त्र बलों के विकास और आधुनिकीकरण पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “चल रहे संघर्षों के सबक हमें सिखाते हैं कि एक सुदृढ़, स्वदेशी और भविष्य के लिए तैयार रक्षा प्रौद्योगिकी और विनिर्माण इकोसिस्टम का निर्माण एक विकल्प नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक आवश्यकता है। कम लागत वाले उच्च तकनीक समाधान विकसित करने और सशस्त्र बलों की युद्ध क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता है। हमारी सेनाओं को न केवल तकनीकी परिवर्तनों के साथ समन्वय रखना चाहिए, बल्कि इसका नेतृत्व भी करना चाहिए।”

श्री राजनाथ सिंह ने राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी घटकों के बीच बेहतर तालमेल की वकालत की। उन्होंने कहा कि

 कूटनीतिक, सूचनात्मक, सैन्य, आर्थिक और तकनीकी क्षेत्रों के संपूर्ण क्षेत्र में कार्रवाई करते समय ‘संपूर्ण राष्ट्र’ दृष्टिकोण को प्रोत्साहन देना इस प्रयास में सफलता सुनिश्चित करने की कुंजी है।

वैश्विक दक्षिण के लिए प्रधानमंत्री के ‘महासागर’ (क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास के लिए पारस्परिक और समग्र उन्नति) के दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि राष्ट्रों के लिए बेहतर भविष्य और समृद्धि प्राप्त करना हमेशा एक सामूहिक प्रयास रहेगा। उन्होंने कहा, “देशों और लोगों के बीच बढ़ती संपर्कता और निर्भरता का अर्थ है कि चुनौतियों का सामना व्यक्तिगत रूप से करने की तुलना में एक साथ मिलकर करना बेहतर है। पारस्परिक हित और तालमेल हमें उप-क्षेत्रीय, क्षेत्रीय और यहां तक कि वैश्विक स्तर पर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेंगे।”

श्री सिंह ने अधिकारियों से भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए पाँच ‘ए’ – जागरूकता, क्षमता, अनुकूलनशीलता, दक्षता और दूत – पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “युद्ध सेनानियों और राष्ट्रीय सुरक्षा के रक्षकों के रूप में, आपको पर्यावरण और इसके प्रभावों के बारे में जागरूक रहने की आवश्यकता है। आपको भविष्य के नेताओं के लिए आवश्यक क्षमता और कौशल हासिल करना चाहिए। आपको प्रमुख गुणों के रूप में अनुकूलनशीलता और दक्षता को अपनाना चाहिए। कल के युद्ध के मैदान में ऐसे नेताओं की आवश्यकता होगी जो अप्रत्याशित परिस्थितियों के अनुकूल हो सकें, अपने लाभ के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठा सकें और अभिनव समाधान निकाल सकें। आपको अपने संबंधित सशस्त्र बलों के दूत बनना चाहिए। परिवर्तन के दूत बनें और बड़े पैमाने पर समाज के बीच आदर्श रोल मॉडल बनें।”

रक्षा मंत्री ने अपने संबोधन की शुरुआत हाल ही में आए भीषण भूकंप के मद्देनजर म्यांमार और थाईलैंड के प्रति भारत के लोगों की एकजुटता और समर्थन व्यक्त करते हुए की। उन्होंने कहा, “भारत हमेशा संकट के समय सबसे पहले अपने मित्रों के साथ खड़ा रहा है और हम म्यांमार के लोगों को समय पर राहत पहुंचाने में सक्षम होना अपना कर्तव्य समझते हैं।”

80 वें स्टाफ कोर्स में 479 अधिकारी शामिल हैं, जिनमें 26 मित्र देशों के 38 अधिकारी भी सम्मिलित हैं। इस कोर्स में तीन महिला अधिकारी भी भाग ले रही हैं।

श्री राजनाथ सिंह ने समारोह से पहले, मद्रास रेजिमेंट युद्ध स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की और वीरों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने देश के लिए उनके अमूल्य योगदान को स्वीकार करते हुए दिग्गजों से बातचीत भी की। इस अवसर पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान सहित कई गणमान्य लोग मौजूद थे।वर्ष 1948 में स्थापित, डीएसएससी एक प्रमुख तीनों सेनाओं का प्रशिक्षण संस्थान है जो भारतीय सशस्त्र बलों और मित्र देशों के चयनित मध्य-स्तर के अधिकारियों को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करता है। इसका उद्देश्य उच्चतर उत्तरदायित्व संभालने के लिए उनकी व्यावसायिक दक्षताओं को बढ़ाना है। पिछले कुछ वर्षों में, 19,000 से अधिक भारतीय अधिकारी और 2,000 अंतर्राष्ट्रीय अधिकारी डीएसएससी से स्नातक हुए हैं, जिनमें से कई दुनिया भर में राष्ट्रों और सैन्य बलों के प्रमुख बने हैं।

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