2013 की आपदा के बाद क्यों अचानक चर्चाओं में आया धारी देवी मदिर क्या इतिहास है धारी देवी मंदिर क्या जुड़ी हुई है मान्यता?
धारी देवी उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह मंदिर देवी धारी को समर्पित है,धारी देवी मंदिर में माता की पूजा-अर्चना परंपरागत रूप से धारी गांव के पांडे ब्राह्मण परिवारों द्वारा की जाती है। ये परिवार पीढ़ियों से मंदिर की सेवा में संलग्न हैं और माता धारी देवी की पूजा के लिए जिम्मेदार हैं। वर्तमान में भी मंदिर के पुजारी, जैसे लक्ष्मी प्रसाद पांडे और रमेश चंद्र पांडे जैसे नाम, इस परंपरा को निभा रहे हैं। ये पुजारी न केवल पूजा-अर्चना करते हैं, बल्कि मंदिर के रखरखाव और भक्तों की सेवा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जिन्हें उत्तराखंड की संरक्षक देवी और चार धामों की रक्षक माना जाता है। मंदिर में देवी की मूर्ति का ऊपरी आधा भाग स्थापित है, जबकि निचला आधा हिस्सा कालीमठ में है, जहां उन्हें काली के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि धारी देवी की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है—सुबह कन्या, दोपहर में युवती और शाम को वृद्धा। यह मंदिर 108 शक्ति स्थलों में से एक है और भक्तों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है।
धारी देवी की मूर्ति के स्थापना के बारे में कोई निश्चित ऐतिहासिक तिथि उपलब्ध नहीं है, क्योंकि यह मंदिर प्राचीन काल से चला आ रहा है और इसकी उत्पत्ति पौराणिक कथाओं से जुड़ी है। स्थानीय मान्यताओं और पुराणों के अनुसार, धारी देवी की पूजा आदि शंकराचार्य के समय (8वीं-9वीं शताब्दी) से या उससे भी पहले से हो रही है। कुछ किवदंतियों में कहा जाता है कि यह मूर्ति स्वयंभू (प्राकृतिक रूप से प्रकट हुई) है, जो इसे और भी प्राचीन बनाती है। हालांकि, मंदिर का वर्तमान स्वरूप और रखरखाव समय-समय पर नवीनीकरण के कारण बदलता रहा है।
ऐतिहासिक दस्तावेजों में इसकी स्थापना का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन यह उत्तराखंड के शक्ति पीठों में से एक होने के कारण सैकड़ों वर्षों से पूजनीय है।
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