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संतुलित थाली ही स्वस्थ जीवन का आधार,:स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश,(ख.स.)। आज विश्व लिवर दिवस है, आज का दिन एक बीमारी से जुड़ा दिन नहीं है बल्कि यह हमारी जीवनशैली, आहार, और समग्र स्वास्थ्य का पुनर्समीक्षा करना है। वर्ष 2025 की थीम है भोजन ही औषधि है जो हमें स्मरण कराती है कि जो हम रोज खाते हैं, वही हमारे स्वास्थ्य का आधार है। यह विषय केवल शरीर नहीं, मन और आत्मा तक के स्वास्थ्य से भी जुड़़ा है।

विश्व लिवर दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने संदेश दिया कि भोजन, शरीर की ऊर्जा भी है और औषधि भी। आधुनिक जीवनशैली में प्रोसेस्ड फूड, जंक फूड, और अनियमित खानपान ने लिवर जैसे महत्वपूर्ण अंग अत्यंत प्रभावित किया है। लिवर शरीर का सबसे बड़ा आंतरिक अंग है, जो विषैले तत्वों को बाहर निकालता है, पाचन में सहायता करता है, और ऊर्जा संग्रहित करता है। यदि लिवर स्वस्थ नहीं, तो पूरा शरीर संतुलन खो देता है।

वर्तमान में फैटी लिवर, हेपेटाइटिस, लिवर सिरोसिस जैसी बीमारियाँ तेजी से बढ़ रही हैं, जिनमें से अधिकांश का कारण गलत आहार और तनावपूर्ण जीवनशैली है। समग्र स्वास्थ्य, केवल शारीरिक नहीं, मानसिक और आत्मिक भी है। स्वामी जी ने कहा कि भारतीय परंपरा में स्वास्थ्य को केवल शरीर तक सीमित नहीं माना गया, बल्कि यह एक समग्र अनुभव है। “शरीरं माध्यम खलु धर्मसाधनम्” यानी शरीर धर्म साधना का माध्यम है, और इसे संतुलित रखना हमारा कर्तव्य है।

स्वामी जी ने कहा कि योग और प्राणायाम लिवर को शुद्ध और सक्रिय रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। योगाभ्यास लिवर की कार्यक्षमता को बढ़ाता हैं और विषैले तत्वों के निष्कासन में सहायक होते हैं। खानपान में सतर्कता ही दीर्घजीवन और रोगमुक्ति की कुंजी है। 

हमारे शास्त्रों में कहा गया है “अन्नं ब्रह्म” इसलिये हमें जैविक और प्राकृतिक जीवनशैली की ओर लौटना होगा क्योंकि रासायनिक उर्वरकों से उत्पन्न अनाज और फल, संरक्षित खाद्य पदार्थ, और अधिक तले हुए खाद्य ये सभी हमारे लिवर को धीरे-धीरे विषाक्त बनाते हैं। हमें अब आवश्यकता है कि हम जैविक (ऑर्गेनिक), मौसमी और ताजे भोजन की ओर लौटें। घर में पकाया गया सादा, सात्विक और समय पर लिया गया भोजन ही असली औषधि है। छाछ, आंवला, हल्दी, गिलोय, नीम ये सब हमारी रसोई में मौजूद प्राकृतिक औषधियाँ हैं।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भोजन केवल पेट भरने का माध्यम नहीं है, यह परमात्मा से जुड़ने का भी सेतु है। जैसा अन्न, वैसा मन और जैसा मन, वैसा जीवन इसलिए भोजन को औषधि की तरह लें। सजग भोजन ये हम सकारात्मक सोच, सेवा व साधना से भरपूर जीवन की ओर बढ़ सकते है।

स्वामी जी ने कहा कि हमारी थाली केवल स्वाद से नहीं, संतुलन, शुद्धता और श्रद्धा से भरपूर होनी चाहिए। स्वयं को प्रकृति से जोड़ना, परंपराओं से जुड़ना, और स्वास्थ्य को समग्र रूप से अपनाना यही आज की सबसे बड़ी चिकित्सा है। भोजन की थाली केवल स्वाद नहीं, स्वास्थ्य और संतुलन की प्रतीक है। यह हमारे तन, मन और आत्मा को पोषण देती है। जब थाली में ताजे, मौसमी, जैविक और सात्विक आहार होते हैं, तब शरीर स्वस्थ और मन शांत रहता है। अति तला-भुना, प्रोसेस्ड और रसायनयुक्त भोजन शरीर को धीरे-धीरे रोगी बनाता है। आयुर्वेद कहता है “अन्नं ब्रह्म”, अर्थात भोजन ही परम शक्ति है। थाली में विविध रंग, पोषक तत्व और श्रद्धा हो, तो वही बनती है सच्ची औषधि। संतुलित थाली ही स्वस्थ जीवन का आधार है।

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