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प्रेस अर्थात सूचना ही नहीं, सच्ची चेतना का भी वाहक : स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश,(ख.स.)। परमार्थ निकेतन में संत श्री दिग्विजय राम जी के श्रीमुख से हो रही दिव्य श्रीमद् भागवत कथा में आज परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का पावन सान्निध्य प्राप्त हुआ। कथायें, समाज में चेतना, दिशा और मूल्य स्थापित करती हैं। श्रीमद् भागवत कथा हमें आत्मबोध, सत्य और सेवा की ओर प्रेरित करती है। कथायें, समाज में विचार परिवर्तन और मूल्य आधारित चेतना का बीजारोपण करती है।

वर्ल्ड प्रेस  फ्रीडम डे के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि पे्रस व पुराण दोनों ही जनजागरण का स्रोत है। वल्र्ड प्रेस फ्रीडम डे केवल एक दिन नहीं है, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सत्य की खोज और जनमानस की आवाज बनने वाले मीडियाकर्मियों के प्रति आभार प्रकट करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। 

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि एक सशक्त, स्वतंत्र और जिम्मेदार प्रेस किसी भी लोकतंत्र की रीढ़ होती है। वर्तमान समय सूचना और संचार का युग है। हर क्षण खबरें, विचार और धारणाएं सोशल मीडिया, डिजिटल मीडिया और प्रिंट मीडिया के माध्यम से जन-जन तक पहुँच रही हैं। ऐसे समय में प्रेस की भूमिका केवल सूचना देने तक सीमित नहीं रह जाती, बल्कि वह विचारों को दिशा देने, जन-जागरण करने और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का माध्यम बन जाती है।

आज जब दुनिया में कई स्तरों पर भ्रम और तनाव है, तब पत्रकारिता का धर्म यह हो जाता है कि वह सत्य को निडरता से सामने लाए और समाज को एक   सुसंस्कृत व संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करे।

स्वामी जी ने कहा कि भारत एक ऐसा राष्ट्र है जहाँ ’वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ’सत्यमेव जयते’ जैसे आदर्शों की गूंज प्राचीन काल से रही है। भारत का संविधान प्रेस की स्वतंत्रता को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में सम्मान देता है परंतु यह स्वतंत्रता अधिकार के साथ उत्तरदायित्व की भी मांग करती है इसलिये इस स्वतंत्रता का प्रयोग केवल सनसनी और टीआरपी की होड़ में न करे, बल्कि राष्ट्रहित, समाजहित और मनुजता के हित में सत्यनिष्ठ पत्रकारिता हो।

स्वामी जी ने कहा कि समाज का निर्माण विचारों से होता है, और विचारों का बीजारोपण प्रेस के माध्यम से हो सकता है। जब प्रेस राष्ट्र की संस्कृति, मूल्यों, नीति और नैतिकता को सामने लाता है, तब जनमानस सजग होता है। एक संवेदनशील, समर्पित और विवेकशील प्रेस ही सामाजिक परिवर्तन का वाहक बन सकता है।

आज के दौर में हमें ऐसी पत्रकारिता की आवश्यकता है जो नकारात्मकता को नहीं, बल्कि समाधान को प्रस्तुत करे। जो केवल समस्या नहीं, बल्कि विकल्पों की ओर भी संकेत दे। पत्रकारिता यदि जनसरोकारों से जुड़ जाए, तो वह स्वयं एक जनआंदोलन बन सकती है।

भारतीय संस्कृति, आत्मा की अभिव्यक्ति है यह केवल परंपराओं या रीतिरिवाजों का संग्रह नहीं, बल्कि एक जीवंत जीवनदृष्टि है जो शांति, सेवा और समरसता पर आधारित है। प्रेस यदि भारतीय संस्कृति और अध्यात्म के मूल तत्वों को जनसामान्य तक पहुँचाए, तो यह केवल संस्कृति की रक्षा ही नहीं करेगा, बल्कि जीवन के लिए एक स्थायी मार्गदर्शन भी उपलब्ध कराएगा।

आज का युवा नई सोच, नए जोश और नवीन तकनीक से परिपूर्ण है लेकिन साथ ही वह अनेक बार दिशाहीनता और भ्रम की स्थितियों से भी गुजरता है। ऐसी स्थिति में प्रेस की यह महान जिम्मेदारी है कि वह युवाओं को सच्ची प्रेरणा, असली आदर्श और सटीक जानकारी दे।

वल्र्ड प्रेस फ्रीडम डे का यह दिन हमें पत्रकारों की स्वतंत्रता के साथ कर्तव्यों, उसकी दिशा और दशा पर विचार करने का अवसर भी देता है। आज आवश्यकता है एक ऐसे मीडिया की जो साहसी हो, संवेदनशील हो और समाज का सच्चा मार्गदर्शक हो। 

स्वामी जी कथा व्यास श्री दिग्विजय सिंह जी और यजमान असावा परिवार को रूद्राक्ष का पौधा हरित भेंट स्वरूप भेंट किया। इस अवसर पर कथा व्यास श्री दिग्वििजय राम जी के गुरूदेव संत श्री रमताराम जी महाराज और अन्य पूज्य संतों का परमार्थ निकेतन में दिव्य अभिनन्दन किया।

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