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आध्यात्मिक स्वास्थ्य का पहला सोपान है शुद्ध आहार : स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश (ख.स.)। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस के अवसर पर सभी का आह्वान करते हुये कहा कि ऋषियों की इस भूमि भारत में, भोजन को ब्रह्म कहा गया है। शास्त्रों ने भोजन को केवल पेट भरने का साधन नहीं है बल्कि चेतना और चरित्र निर्माण का आधार भी है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है अन्नं ब्रह्म, रसो वै सः। भोजन का स्वाद केवल रसना में नहीं, हमारी सोच, संकल्प और स्वास्थ्य में उतरता है। ऐसे में, भोजन का शुद्ध और सुरक्षित होना, केवल स्वास्थ्य का नहीं, आध्यात्मिकता का भी प्रश्न है।

आज विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस हमें संदेश देता है कि हमारे भोजन की गुणवत्ता हमारे जीवन की गुणवत्ता तय करती है। भोजन की सुरक्षा हम सबकी साझी जवाबदेही है। यह किसानों से लेकर परिवारों तक, प्रसंस्करण से प्लेट तक की यात्रा है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि असुरक्षित भोजन एक अदृश्य खतरा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर वर्ष लगभग 1/10 व्यक्ति दूषित भोजन के कारण बीमार पड़ते हंै। 200 से अधिक रोग, दस्त, कैंसर, फूड प्वाइजनिंग आदि केवल असुरक्षित भोजन के कारण होते हैं। सबसे अधिक संकट उन बच्चों पर होता है जो 5 वर्ष से कम उम्र के हैं, जिनमें से सैकड़ों की मृत्यु हर दिन फूडबॉर्न डिजीज के कारण होती है।

असुरक्षित भोजन पूरी मानवता के स्वास्थ्य पर असर डालता है। यह सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में भी बाधक है। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना भूख मिटाने, अच्छे स्वास्थ्य, स्वच्छ जल और जीवन की गरिमा इन सभी लक्ष्यों से जुड़ा है।

भारतीय संस्कृति में भोजन से पहले शुद्धिकरण, परोसने की विधि, आहार संयम और ऋतुभोजन जैसी परंपराएँ इसी समझ पर आधारित है कि जैसा अन्न वैसा मन इसलिये हल्का व सुपाच्य भोजन ग्रहण करने का विधान है। 

श्री भगवद्गीता कहती है युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु अर्थात संतुलित आहार और संयमित जीवन ही योग और स्वास्थ्य का आधार है। आयुर्वेद के अनुसार हितभुक, मितभुक, ऋतभुक अर्थात् जो हितकारी, सीमित मात्रा में और ऋतु के अनुसार खाया जाए वही अमृत बनता है।

गुरूकुल परम्परा में भोजन से पूर्व प्रार्थना और भोजन के बाद आभार व्यक्त करना ये सब भोजन के प्रति हमारी मर्यादा को जगाने के ही प्रयास है। आध्यात्मिक स्वास्थ्य का पहला सोपान है शुद्ध आहार।

स्वामी जी ने कहा कि भोजन केवल शरीर की भूख नहीं, आत्मा की शांति का भी स्रोत है। जैसा आहार, वैसा विचार इसलिए भोजन को प्रसाद मानकर, भावपूर्वक ग्रहण करें। हमारे यहां परमार्थ निकेतन गुरूकुल में आहार, शिक्षा का अभिन्न अंग है। ऋषिकुमारों को सिखाया जाता था कि भोजन कैसे तैयार करें, कैसे परोसें और कैसे ग्रहण करें, क्योंकि भोजन का संस्कार ही जीवन का संस्कार बन जाता है।

विश्व खाद्य संगठन ने भोजन की सुरक्षा के लिए 5 सरल लेकिन प्रभावी उपाय सुझाए हैं स्वच्छता बनाए रखें, कच्चे और पके हुए खाद्य पदार्थों को अलग रखें, भोजन को अच्छी तरह पकाएं, सही तापमान पर भोजन को रखें, स्वच्छ जल और सुरक्षित कच्चे पदार्थों का उपयोग करें।

खाद्य सुरक्षा सबकी साझी जिम्मेदारी भी है। किसान जब जैविक उर्वरकों का चयन करे, उपभोक्ता जब पैकिंग की तारीख देखे, गृहिणी जब स्वच्छता का ध्यान रखे और व्यापारी जब शुद्धता से समझौता न करे तब मिलकर हम एक स्वस्थ भारत, समर्थ भारत का निर्माण कर सकते हैं। अगर हम रासायनिक खाद्य पदार्थों की जगह जैविक व प्राकृतिक विकल्प अपनाते हैं, तो हम केवल अपने स्वास्थ्य की नहीं, धरती माता की भी रक्षा कर रहे होते हैं। खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण सुरक्षा आज अभिन्न रूप से जुड़ गये हैं।

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस जानकारी के साथ जिम्मेदारी का भी दिन है। आइए इस अवसर पर संकल्प लें कि शुद्ध खाएं, संयम से खाएं, ऋतु अनुसार खाएं। अपने बच्चों को भोजन के संस्कार दें, केवल स्वाद नहीं। परिवार में, विद्यालय में और समाज में खाद्य सुरक्षा पर चर्चा व चिंतन अवश्य करें क्योंकि स्वस्थ भोजन ही स्वस्थ जीवन और सतत भविष्य का आधार है।

भारतीय संस्कृति में तो अन्न उगाने वालों को अन्नदाता, और भोजन पकाने वालों को अन्नपूर्णा कहा गया है इसलिये इस संस्कृति का सम्मान करें और भोजन का आदर करें।

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